Bhagavad Gita: Chapter 1, Verse 44

उत्सन्नकुलधार्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥44॥

उत्सन्न–विनष्ट; कुल-धर्माणाम्-जिनकी पारिवारिक परम्पराएं; मनुष्याणाम्-ऐसे मनुष्यों का; जनार्दन–सभी जीवों के पालक, श्रीकृष्ण; नरके-नरक में; अनियतम्-अनिश्चितकाल; वासः-निवास; भवति–होता है; इति–इस प्रकार; अनुशुश्रुम विद्वानों से मैंने सुना है।

Translation

BG 1.44: हे जनार्दन! मैंने गुरुजनों से सुना है कि जो लोग कुल परंपराओं का विनाश करते हैं, वे अनिश्चितकाल के लिए नरक में डाल दिए जाते हैं।

Commentary

अर्जुन अपने तर्कों को अपने निजी अनुभव तथा आचार्यों से जो सुन रखा है उस के आधार पर प्रस्तुत करता है। वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने की यही विधि है जिस व्यक्ति ने पहले से ज्ञान प्राप्त कर रखा है उस व्यक्ति की सहायता के बिना कोई भी वास्तविक ज्ञान तक नहीं पहुँच सकता। वर्णाश्रम-धर्म की एक पद्धति के अनुसार मृत्यु के पूर्व मनुष्य को पापकर्मों के लिए प्रायश्चित करना होता है जो पापात्मा है उसे इस विधि का अवश्य उपयोग करना चाहिए।

Swami Mukundananda

1. अर्जुन विषाद योग

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